Kabir Ke Dohe in Hindi : "कबीर के दोहे" भारतीय साहित्य की अनमोल धरोहर हैं, जो न सिर्फ ज्ञान और अनुभव का भंडार हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और जीवन दर्शन को भी संवारते हैं। कबीर के दोहों में सरल भाषा में गहरे विचार छिपे होते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करते हैं। इस ब्लॉग में हम " कबीर के दोहे हिंदी में " को विस्तार से समझेंगे, ताकि आप उनके गूढ़ अर्थों को जान सकें और अपने जीवन में उन्हें उतार सकें।
"Kabir Ke Dohe" are a priceless treasure of Indian literature that not only offer a wealth of wisdom and experience but also shape our culture and philosophy of life. Kabir's couplets, in simple language, hide profound thoughts that help us understand various aspects of life. In this blog, we will explore ' Kabir Ke Dohe in Hindi ' in detail, so you can uncover their deep meanings and apply them in your life.
1. दोहा:
बूंद पड़े सागर में, सागर लहर दिखाए।
जैसे मन में प्रेम हो, दुनिया बदल जाए।
अर्थ:
जैसे एक बूंद सागर में गिरते ही सागर की लहरों का हिस्सा बन जाती है, वैसे ही जब मन में सच्चा प्रेम होता है, तो हमारी सोच और दुनिया को देखने का नजरिया बदल जाता है।
2. दोहा:
काठ की काठी क्या करे, जब मन मोती होय।
सच्चे साधक बन पड़े, मन माला ना तोय।
अर्थ:
अगर दिल में सच्चाई और पवित्रता है, तो बाहरी आडंबर या दिखावे का कोई महत्व नहीं है। सच्चे साधक वही हैं जो अपने मन की पवित्रता को बनाए रखते हैं, बाहरी चीजों से उनका प्रभाव नहीं पड़ता।
3. दोहा:
ज्यों गागर में जल भरे, प्यास कभी ना जाए।
संसार के सुख में बसा, मन ना तृप्ति पाए।
अर्थ:
जैसे एक खाली घड़ा भरने पर भी प्यास नहीं बुझाता, वैसे ही संसार के सुख-साधनों में जीवन जीने वाला व्यक्ति कभी सच्ची तृप्ति नहीं पा सकता। सच्ची संतुष्टि केवल आत्मज्ञान और प्रेम से मिलती है।
4. दोहा:
अंधकार को क्यों ढूंढे, दीप जलाए रात।
ज्ञान का दीपक मन में हो, मिटी जाए हर बात।
अर्थ:
अंधकार से डरने की बजाय, हमें अपने भीतर ज्ञान का दीपक जलाना चाहिए। जब आत्मज्ञान और समझ का दीपक जलता है, तो सभी समस्याएँ और भ्रम दूर हो जाते हैं।
5. दोहा:
रस में डूबा मन रहे, तन का ना हो ध्यान।
जो साधक ये पथ चले, पा जाए भगवान।
अर्थ:
जिस साधक का मन प्रेम और भक्ति के रस में डूबा रहता है और जो तन की नहीं, आत्मा की साधना करता है, वही सच्चे अर्थों में ईश्वर को प्राप्त करता है।
6. दोहा:
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
अर्थ: ऊंचाई या बड़े होने का कोई मतलब नहीं, जैसे खजूर का पेड़ ना छाया देता है और ना ही फल आसानी से मिलता है। इसी तरह बिना दूसरों की मदद के ऊँचा होना बेकार है।
7. दोहा:
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
जो मन पर जीत करे, जग पर करे प्रतीत।
अर्थ: मन से हार मानने पर ही असली हार होती है और मन से जीतने पर ही सफलता मिलती है। जो अपने मन को नियंत्रित करता है, वही दुनिया को जीत सकता है।
8. दोहा:
माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ: माला फेरने से कुछ नहीं होता जब तक मन का फेर नहीं बदलता। असली भक्ति तो मन को शुद्ध करने में है, न कि बाहरी कर्मकांड में।
9. दोहा:
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।
अर्थ: हर काम को समय के अनुसार करना चाहिए, जल्दबाजी से कुछ नहीं होता। जैसे माली चाहे जितना पानी डाले, फल तो अपने समय पर ही लगते हैं।
10. दोहा:
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ: केवल ग्रंथ पढ़ने से कोई विद्वान नहीं बनता। असली विद्वान वही है जिसने प्रेम को समझा और अपनाया है।
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11. दोहा:
जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाय।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दुई न समाय।
अर्थ: जब तक अहंकार था, गुरु की महिमा समझ नहीं आई। प्रेम की गली इतनी संकरी है कि उसमें अहंकार और गुरु साथ नहीं चल सकते।
12. दोहा:
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ: अपने आलोचकों को पास ही रखें, क्योंकि उनकी आलोचना हमें सुधरने का मौका देती है। वे बिना किसी अतिरिक्त साधन के हमारे स्वभाव को शुद्ध करते हैं।
13. दोहा:
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ: सच्चा साधु वही है जो सूप की तरह हो, जो सार्थक बातों को पकड़ता है और व्यर्थ की चीजों को दूर कर देता है।
14. दोहा:
दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।
मरी खाल की सांस से, लोह भस्म हो जाय।
अर्थ: कमजोर को सताना नहीं चाहिए, उसकी आह भी बहुत भारी पड़ सकती है। जैसे मरी खाल की सांस से लोहे तक को राख में बदल दिया जाता है।
15. दोहा:
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।
अर्थ: कबीर चक्की को देखकर दुखी होते हैं, क्योंकि जीवन भी दो पाटों के बीच में फंस जाता है, जहां कोई साबुत नहीं बच पाता।
16. दोहा:
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।
अर्थ: कल के काम को आज ही करना चाहिए और आज के काम को अभी। समय का भरोसा नहीं है, पल में जीवन का अंत हो सकता है।
17. दोहा:
नारी निंदा मत करिए, नारी रतन की खान।
नारी से नर होत हैं, ध्रुव, प्रहलाद समान।
अर्थ: स्त्री की निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह रत्नों की खान है। स्त्री से ही महान पुरुष पैदा होते हैं, जैसे ध्रुव और प्रह्लाद।
18. दोहा:
रात गंवाई सोय के, दिन गंवाया खाय।
हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय।
अर्थ: हमने रात सोने में और दिन खाने में बर्बाद कर दिया। अमूल्य जीवन को हमने तुच्छ कामों में गंवा दिया।
19. दोहा:
पानी बचे तो मोती होय, जल बिन जग सूना।
पानी बिन सब सून है, जैसे तृण बिन दूना।
अर्थ: पानी का मूल्य अनमोल है। जल के बिना संसार सूना है, जैसे घास के बिना मैदान सूना हो जाता है।
20. दोहा:
सत्य कहूँ तो मारन धावे, झूठ कहूँ जग पतियाए।
कबीर का यह सत्य वचन, कौन समझेगा और बताए।
अर्थ: सत्य बोलने पर लोग मारने को दौड़ते हैं और झूठ पर सब विश्वास कर लेते हैं। कबीर का यह सत्य वचन कौन समझेगा?
1. दोहे:
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"
अर्थ:
जब मैं इस संसार में बुराई खोजने निकला, तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने दिल को टटोला, तो पाया कि असली बुराई मेरे ही भीतर है।
2. दोहे:
"मन ही मंदिर, मन ही मस्जिद, मन ही है गुरुद्वार।
जो मन को साध ले, वही बने अवतार।"
अर्थ:
मन ही सच्चा मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा है। जो अपने मन को साध लेता है, वही सच्चे अर्थों में महान आत्मा बनता है।
3. दोहे:
"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।"
अर्थ:
सब कुछ धीरे-धीरे समय से ही होता है। जैसे माली कितनी भी मेहनत करे, फल तो सही मौसम में ही आएगा। धैर्य रखना ज़रूरी है।
4. दोहे:
"कबीरा तेरी झोंपड़ी, गल कटियन के पास।
जो करेगा सो भरेगा, तू न कर उपहास।"
अर्थ:
कबीर कहते हैं कि हमारी झोंपड़ी उनके पास होनी चाहिए जो जरूरतमंद हैं, क्योंकि जो हम दूसरों के लिए करते हैं, वही हमें वापस मिलता है। दूसरों का उपहास मत करो।
5. दोहे:
"साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय।"
अर्थ:
साधु वैसा होना चाहिए जैसे सूप, जो सार्थक चीज़ों को अपने पास रखता है और बेकार की चीज़ों को उड़ा देता है।
6. दोहे:
"निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।"
अर्थ:
जो हमारी आलोचना करते हैं, उन्हें पास ही रखना चाहिए। वे बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को सुधारने में मदद करते हैं।
7. दोहे:
"झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
कबीर सुख सच्चा नहीं, सुपने ज्यों सुख होय।"
अर्थ:
कबीर कहते हैं कि जो सुख हमें झूठी चीज़ों से मिलता है, वह वास्तविक सुख नहीं है। यह ऐसा है जैसे सपने में सुख की अनुभूति हो।
8. दोहे:
"कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।"
अर्थ:
कबीर कहते हैं कि मैं बाजार में खड़ा होकर सभी की भलाई की दुआ करता हूँ। मेरा किसी से दोस्ती का रिश्ता नहीं और न ही किसी से दुश्मनी है।
9. दोहे:
"साधु निंदा न कीजिए, साधु निंदा दोष।
जो निंदक सबते भला, पूरन साधु न कोश।"
अर्थ:
साधुओं की निंदा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह खुद के लिए दोषपूर्ण है। निंदक से सीखो, क्योंकि वह साधु की छिपी अच्छाइयों को प्रकट करता है।
10. दोहे:
"हिरदै भीतर राम है, देख आवत कास।
कहैं कबीर अचेत तू, जागे न देखै पास।"
अर्थ:
राम हमारे हृदय के भीतर ही हैं, फिर तू बाहर क्यों देखता है? कबीर कहते हैं कि तू चेतन हो जा, और अपने भीतर के राम को पहचान।
11. दोहे:
"बोली एक अनमोल है, जो कोई बोले जान।
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आंन।"
अर्थ:
बोली अनमोल होती है, इसलिए जो भी बोले, सोच-समझकर बोले। अपने दिल में तौलकर ही शब्दों को मुख से बाहर लाना चाहिए।
12. दोहे:
"माला फेरत जग गया, मनका फेरै नाहिं।
कहैं कबीर जब तक मन, सच्चा न होय सवाहिं।"
अर्थ:
माला तो हाथ से फेरते हैं, लेकिन मन की गिनती नहीं करते। कबीर कहते हैं कि जब तक मन सच्चा न हो, तब तक यह सब दिखावा है।
13. दोहे:
"निंदिया मत कीजिए, निंदिया बुरी बलाय।
निंदक से सच जानिए, जैसा होय सो कहाय।"
अर्थ:
निंदा करना बुरी आदत है, इससे बचना चाहिए। निंदक से हमें खुद के बारे में सच्चाई का पता चलता है, इसलिए इसे समझदारी से लेना चाहिए।
14. दोहे:
"पानी बिन मछली दुखी, कैसे जीवै नीर।
कबीर कहे सो साधु, जो तजे मोह शरीर।"
अर्थ:
जिस तरह पानी के बिना मछली नहीं जी सकती, उसी प्रकार सच्चा साधु वही है, जो शरीर के मोह को त्यागकर जीता है।
15. दोहे:
"संत न छोड़ें सत्य को, चाहे मिलें कष्ट।
कहें कबीर सो संत है, जो सत्य को पकड़े मठ।"
अर्थ:
संत कभी भी सत्य का त्याग नहीं करते, चाहे कितने भी कष्ट आएं। कबीर कहते हैं, वह सच्चा संत है जो सत्य की राह पर दृढ़ता से चलता है।
16. दोहे:
"कबीरा गरब न कीजिए, कबहुँ न हंसिए कोय।
जिन दिन हंसिहो आपना, तिन दिन रोइहौ रोय।"
अर्थ:
कबीर कहते हैं कि अहंकार न पालो और किसी का उपहास मत करो। जिस दिन तुम दूसरों का उपहास करोगे, उस दिन तुम्हें खुद रोना पड़ेगा।
17. दोहे:
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान।"
अर्थ:
साधु की जाति पूछने की बजाय उसका ज्ञान पूछो। जैसे तलवार की कीमत होती है, म्यान की नहीं।
18. दोहे:
"तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।
सब सिद्धि सहजे पावता, जो मन जोगी होय।"
अर्थ:
शरीर से योगी होना आसान है, लेकिन मन से योगी होना बहुत कठिन है। जो मन से योगी बनता है, वह सभी सिद्धियों को प्राप्त कर सकता है।
19. दोहे:
"मन मूरख ताहि को, गुरू न मिलता सही।
कहें कबीर बिना विवेक, समर्पण होय न सही।"
अर्थ:
मूर्ख मन को सही गुरु नहीं मिल पाता। कबीर कहते हैं कि बिना विवेक और समझ के, समर्पण संभव नहीं है।
20. दोहे:
"झूठी माया के फेर में, सब जग अंधा होय।
कहें कबीर सच्चा वही, जो राम नाम रटोय।"
अर्थ:
झूठी माया के चक्कर में यह पूरा संसार अंधा हो गया है। कबीर कहते हैं कि सच्चा वही है, जो राम का नाम जपता है और माया के मोह से बचता है।
21. दोहे:
"आवागमन का यह चक्र, कबीर समझाओ तुम।
जो पथ सत्य पकड़े रहे, उसका होवे अंत सुम।"
अर्थ:
कबीर जीवन के आवागमन के चक्र को समझाते हैं। जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, उसके लिए अंत में शांति और मोक्ष का द्वार खुलता है।
दोहा 1:
जग में कोई न सच्चा, सब में पाप बसे।
कबिरा वही है सच्चा, जो खुद से लड़े असे।
अर्थ:
इस संसार में हर किसी के भीतर कुछ न कुछ पाप छिपा हुआ है। सच्चा वही है जो अपने अंदर के बुरे विचारों और कर्मों से लड़ता है।
दोहा 2:
मन की माया छोड़ दे, जग में क्या है तेरा।
कबिरा वही सच्चा है, जिसने माया से नाता तेरा।
अर्थ:
इस संसार की माया (धन, पद, आदि) को छोड़ दे, क्योंकि यह सब अस्थायी है। सच्चा वही है जो माया से मुक्त हो जाता है।
दोहा 3:
गुरु बिना ज्ञान न होय, मति करे अज्ञान।
कबिरा वही सच्चा है, जो गुरु से पाए ज्ञान।
अर्थ:
गुरु के बिना सही ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। सच्चा वही है जो गुरु से शिक्षा प्राप्त करता है और अज्ञानता से बाहर निकलता है।
दोहा 4:
पानी की नाव चली, मंजिल ना दिखाए।
कबिरा वही सच्चा है, जो साहस से पार लगाए।
अर्थ:
जीवन के सफर में मुश्किलें आएंगी, लेकिन सच्चा वही है जो साहस और धैर्य से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है।
दोहा 5:
सत्य का जो दीप जले, उसका उजियारा।
कबिरा वही सच्चा है, जो सत्य से न हारा।
अर्थ:
सत्य की राह पर चलने वाला व्यक्ति हमेशा उजाले में रहता है। सच्चा वही है जो सत्य का पालन करता है और कभी हार नहीं मानता।
दोहा 6:
मन का जो भी विचार, उसे तू जान सही।
कबिरा वही सच्चा है, जो सत्य को मान सही।
अर्थ:
अपने मन के विचारों को पहचानना और समझना चाहिए। सच्चा वही है जो अपने विचारों में सत्य की खोज करता है।
दोहा 7:
मोह का जो जाल काटे, वही धनवान।
कबिरा वही सच्चा है, जो ममता से हो अज्ञान।
अर्थ:
जो व्यक्ति मोह-माया के जाल से मुक्त हो जाता है, वही वास्तव में धनवान होता है। सच्चा वही है जो मोह से अज्ञानता को पहचानता है।
दोहा 8:
जिसके मन में प्रेम हो, वही है ज्ञानी।
कबिरा वही सच्चा है, जिसका हृदय निर्मल पानी।
अर्थ:
जिसके मन में प्रेम होता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है। सच्चा वही है जिसका दिल पवित्र और साफ होता है।
दोहा 9:
संतोष का जो धन पाए, वही सुखी इंसान।
कबिरा वही सच्चा है, जिसने पाया संतोष महान।
अर्थ:
संतोष का धन जिसे मिल जाता है, वही सबसे सुखी होता है। सच्चा वही है जिसने संतोष का महत्व समझा है।
दोहा 10:
अहंकार जो त्याग दे, वही है संत।
कबिरा वही सच्चा है, जो हो विनम्र और शांत।
अर्थ:
जो व्यक्ति अहंकार का त्याग कर देता है, वही सच्चा संत है। सच्चा वही है जो विनम्र और शांत स्वभाव का होता है।
दोहा 11:
दया का जो हो दीपक, वही पवित्र आत्मा।
कबिरा वही सच्चा है, जिसके मन में हो करुणा।
अर्थ:
जो व्यक्ति दया का दीपक जलाता है, वही पवित्र आत्मा है। सच्चा वही है जिसके हृदय में करुणा का भाव हो।
दोहा 12:
सत्य की जो राह चले, उसे ना लगे डर।
कबिरा वही सच्चा है, जो सत्य का रखे घर।
अर्थ:
सत्य की राह पर चलने वाला व्यक्ति कभी डरता नहीं। सच्चा वही है जो अपने जीवन में सत्य का पालन करता है।
दोहा 13:
माया का जो मोह छोड़े, वही है मुक्त।
कबिरा वही सच्चा है, जिसने खुद को पहचाना युक्त।
अर्थ:
जो व्यक्ति माया का मोह त्याग देता है, वही वास्तव में मुक्त हो जाता है। सच्चा वही है जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया है।
दोहा 14:
जो पराया धन ना चाहे, वही संत महंत।
कबिरा वही सच्चा है, जिसका मन हो अंत।
अर्थ:
जो व्यक्ति दूसरों का धन नहीं चाहता, वही सच्चा संत होता है। सच्चा वही है जिसका मन निर्मल और स्वार्थ रहित हो।
दोहा 15:
कर्म का जो फल मिले, उसे सहर्ष माने।
कबिरा वही सच्चा है, जो अपने कर्मों को पहचाने।
अर्थ:
जो व्यक्ति अपने कर्मों का फल सहर्ष स्वीकार करता है, वही सच्चा है। सच्चा वही है जो अपने कर्मों का सही अर्थ समझता है।
दोहा 16:
जो जग को भूलकर, राम का ध्यान करे।
कबिरा वही सच्चा है, जो प्रेम से भरे।
अर्थ:
जो व्यक्ति संसार को भूलकर राम का ध्यान करता है, वही सच्चा है। सच्चा वही है जो ईश्वर के प्रेम से भरा होता है।
दोहा 17:
सच्चाई का जो अमृत पीए, वही अमर।
कबिरा वही सच्चा है, जिसका मन हो सरल।
अर्थ:
सच्चाई का अमृत जो पीता है, वही अमर होता है। सच्चा वही है जिसका मन सरल और सच्चा हो।
दोहा 18:
स्वार्थ का जो त्याग करे, वही प्रभु का भक्त।
कबिरा वही सच्चा है, जो सच्चे मन से प्रभु का भजत।
अर्थ:
जो व्यक्ति स्वार्थ का त्याग करता है, वही सच्चा भक्त होता है। सच्चा वही है जो सच्चे मन से प्रभु का भजन करता है।
दोहा 19:
माया का जो भेद समझे, वही ज्ञानी।
कबिरा वही सच्चा है, जिसका मन हो पानी।
अर्थ:
जो व्यक्ति माया के भेद को समझ जाता है, वही सच्चा ज्ञानी होता है। सच्चा वही है जिसका मन निर्मल और साफ हो।
दोहा 20:
मन का जो विकार मिटाए, वही संत।
कबिरा वही सच्चा है, जो हो मन से शांत।
अर्थ:
जो व्यक्ति अपने मन के विकारों को मिटा देता है, वही सच्चा संत होता है। सच्चा वही है जो मन से शांत और स्थिर रहता है।
1. साधु देखो सांचे मन का, द्वेष न मन में धार।
झूठा मन हरदम डरे, सच्चा रहे निहार॥
अर्थ: सच्चे साधु का मन हमेशा साफ और बिना द्वेष के होता है। जो व्यक्ति झूठा होता है, वह हमेशा डरता रहता है, जबकि सच्चा व्यक्ति हमेशा सुकून में रहता है।
2. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सांचे गहना।
सब हीरे मोती बन गए, कोई न रहा गेहना॥
अर्थ: ऐसा साधु होना चाहिए जैसे कि शुद्ध आभूषण होता है। उसकी संगति में सभी अनमोल बन जाते हैं, कोई भी साधारण नहीं रहता।
3. गुरु बिन ज्ञान न होवे, गुरु बिना न ध्यान।
गुरु बिना गति ना मिले, भटके बिनु पहचान॥
अर्थ: गुरु के बिना न तो ज्ञान मिलता है, न ही ध्यान लग पाता है। जीवन की दिशा पाने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है, नहीं तो व्यक्ति भटकता रहता है।
4. मन न रंगाया, रंगाई कहां से होए।
झूठा रंग छूट जाएगा, सच्चा रहे न होए॥
अर्थ: अगर मन को रंगा नहीं गया तो बाहर का रंग कैसे टिकेगा? झूठ का रंग उतर जाएगा, लेकिन सच्चाई का रंग हमेशा कायम रहेगा।
5. कबिरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि वह बाज़ार में खड़े होकर सबकी भलाई मांगते हैं। न किसी से दोस्ती करते हैं, न ही किसी से दुश्मनी।
6. दुनिया का मेला है, धोखा ही धोखा।
जीवन के खेल में, सत्य ही ज्यों सोना॥
अर्थ: दुनिया का मेला धोखे से भरा हुआ है। जीवन के खेल में केवल सत्य ही सोने की तरह अमूल्य होता है।
7. आंख मिचाए खोजता, खोजे बिनु आधार।
अंतर का जब दीप जले, तभी मिले सत्कार॥
अर्थ: जो आंखें बंद करके खोजता है, वह बिना आधार के ही खोज करता है। जब आत्मा का दीपक जलता है, तभी सही मार्ग मिल पाता है।
8. पानी में मीन प्यासी, प्रेम बिना सुख कौन।
जग रचकर सब भरमाया, प्रेम बिना सब शून्य॥
अर्थ: जैसे मछली पानी में प्यास से व्याकुल होती है, वैसे ही प्रेम के बिना कोई सुख नहीं मिलता। दुनिया ने कई भ्रामक चीजें बनाई हैं, लेकिन प्रेम के बिना सब कुछ शून्य है।
9. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंधे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंधूंगी तोय॥
अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे क्यों गूंथता है? एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुझे गूंथूंगी। यह संसार की नश्वरता को दर्शाता है।
10. जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी।
फूटा कुंभ जल जलहि समाना, यह तथ कथा ज्ञानी॥
अर्थ: घड़े में जल और जल में घड़ा है, बाहर और भीतर दोनों एक ही हैं। जब घड़ा फूटता है तो जल जल में मिल जाता है, यह ज्ञान की सत्यता को दर्शाता है।
11. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
अर्थ: जब मैं दुनिया में बुराई खोजने निकला, तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने अंदर झांका, तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।
12. रात गंवाई सोए के, दिन गंवाया खाय।
हीरा जन्म अनमोल है, कौड़ी बदले जाए॥
अर्थ: रात को सोने में बिता दिया और दिन को खाने में। यह जीवन हीरे जैसा अनमोल था, जिसे मैंने कौड़ियों में गवा दिया।
13. सांस-सांस पर लिखा है, होनी का है लेख।
जागो और समझ लो, मत करो संशय का पेक॥
अर्थ: हर सांस पर हमारी होनी का लेखा लिखा हुआ है। जागो और इसे समझ लो, संशय में रहना छोड़ दो।
14. तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोय।
सहज जोगी होई रहे, जो मन जोगी होय॥
अर्थ: शरीर से योगी तो हर कोई बन जाता है, लेकिन मन से योगी बनना मुश्किल है। जो मन से योगी होता है, वही असली योगी है।
15. साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय॥
अर्थ: साधु ऐसा होना चाहिए जैसे सूप होता है, जो अनाज को साफ कर के छानता है, सार को रखता है और बेकार को उड़ा देता है।
16. काया माटी हो जाएगी, मन के सांचे होय।
सच्चा प्रेम जो कर सका, वही मुक्ति पाय॥
अर्थ: यह शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा, लेकिन मन को सच्चा बनाना चाहिए। सच्चा प्रेम करने वाला ही मुक्ति प्राप्त करता है।
17. दुनिया रचकर भूल गए, खुद का ही परमार्थ।
जिस दिन तुम जाग जाओगे, मिलेगा सही सार॥
अर्थ: दुनिया की माया में उलझ कर हमने अपने असली उद्देश्य को भूल गए हैं। जिस दिन जागेंगे, उस दिन जीवन का सही सार मिलेगा।
18. झूठे को मन भाए, सच्चा करे वियोग।
मन की माया तोड़िए, तभी सजे सयोग॥
अर्थ: झूठा व्यक्ति मन को भाता है, जबकि सच्चाई से मन अलग हो जाता है। जब मन की माया टूटेगी, तभी सही संबंध बन पाएंगे।
19. अमृत बूँद की तरह है, सच्चा वह विश्वास।
जिसने इसे चखा नहीं, उसे क्या संतोष॥
अर्थ: सच्चा विश्वास अमृत की बूँद की तरह होता है। जिसने इसका स्वाद नहीं चखा, उसे असली संतोष कैसे मिलेगा?
20. अंतरजामी सब जानता, मुझसे क्या छिपाय।
मन को साफ कर ले रे, सत्य ही परमाय॥
अर्थ: जो अंतरजामी है, वह सब जानता है, उससे कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता। मन को साफ कर लो, सत्य ही परम सत्य है।
21. मन की मुरली बज रही, सुने न कोई सार।
जब तक आत्मा जागेगी, तभी मिलेगा पार॥
अर्थ: मन की मुरली हमेशा बज रही है, लेकिन कोई उसे नहीं सुनता। जब तक आत्मा जागेगी, तभी जीवन की सच्चाई का पार मिलेगा।
1. मन के मीत बने जो, वो ही सच्चा संग,
संसार की चाल में, सब हैं ज्योंसे भंग।
अर्थ:
जो व्यक्ति आपके मन का मित्र बन जाता है, वही सच्चा संग है। संसार की चालों में सभी भंग होते हैं, लेकिन सच्चा मित्र वही है जो मन से जुड़ा होता है।
2. अंधकार से कुछ नहीं, जोत हो अपने साथ,
मन में दीप जलाइए, मिट जाए हर बात।
अर्थ:
अंधकार का कोई अस्तित्व नहीं जब आपकी आत्मज्योति साथ हो। अपने मन में दीप जलाइए और हर समस्या का समाधान पा सकते हैं।
3. सुख में जग साथी मिले, दुख में हो अकेला,
जो सच्चा साधक बने, वो ही है सब केला।
अर्थ:
जब सुख होता है, तब पूरा संसार साथ होता है, परंतु दुख में हम अकेले पड़ जाते हैं। जो सच्चा साधक होता है, वही अपने जीवन के सभी फल प्राप्त करता है।
4. गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना जीवन सूना,
ज्ञान का प्रकाश हो, तो सब दिखे रौशन दूना।
अर्थ:
गुरु के बिना ज्ञान नहीं मिलता, और ज्ञान के बिना जीवन सूना रहता है। जब ज्ञान का प्रकाश होता है, तो जीवन में सब कुछ दोगुना रौशन हो जाता है।
5. निंदक रहे पास में, होय सदा ही दान,
जो कहे कड़वी बात, वही सच्चा ग्यान।
अर्थ:
जो आपकी निंदा करता है, उसे पास में रखना चाहिए, क्योंकि वही आपको सच्चा ज्ञान दे सकता है। उसकी कड़वी बातों में ही सच्चाई होती है।
1. दुनिया में जब खोजे, सत्य की पहचान,
अपने भीतर झांके, मिल जाएगी जान।
अर्थ: अगर तुम सत्य की तलाश कर रहे हो, तो उसे बाहर नहीं बल्कि अपने भीतर खोजो। सत्य हमारे मन और आत्मा में छिपा है।
2. मन मेला तो जग मेला, मन निर्मल तो साफ,
अपने मन को धो सको, तो मिलेगा इंसाफ।
अर्थ: अगर हमारा मन अशुद्ध है, तो दुनिया भी वैसी ही दिखेगी। अगर मन पवित्र हो, तो हमें हर जगह शांति और सच्चाई मिलेगी।
3. सच्चा सुख तो दिल में है, दौलत में न खोज,
माया में जो उलझा रहे, वह समझे न रोज।
अर्थ: सच्चा सुख धन-दौलत में नहीं बल्कि अपने दिल में है। जो लोग माया में उलझे रहते हैं, वे हर दिन अपने सच्चे सुख से दूर हो जाते हैं।
4. खुद से जो न मिल सके, दुनिया से क्या मांग,
अंदर झांके पहले तू, तभी होगा रंग।
अर्थ: अगर हम खुद से मिलना नहीं जानते, तो दुनिया से कुछ मांगने का क्या फायदा? पहले खुद को जानो, फिर जीवन में खुशहाली आएगी।
5. वाणी मधुर बनाय के, मन को रख सदा साफ,
जिसने मन को जीता है, वही करे न्याय।
अर्थ: अपनी वाणी को हमेशा मधुर बनाकर रखो और मन को साफ। जिसने अपने मन को जीत लिया, वही न्याय कर सकता है।
6. दुनिया की झूठी माया में, जो खोया रहता मौन,
जग के झूठे झांसे में, वो देख न पाए कौन।
अर्थ: जो व्यक्ति माया के जाल में फंसकर चुप रहता है, वह दुनिया के धोखे में पड़ जाता है और सच्चाई को देख नहीं पाता।
7. कागज के फूलों में, खुशबू ढूंढे कौन,
सच्चे फूल को पहचान लो, तब जानोगे कौन।
अर्थ: नकली चीजों में सच्चाई ढूंढने का कोई फायदा नहीं। सच्ची सुंदरता और सच्चाई को पहचानना सीखो।
8. ज्ञान की कोई सीमा नहीं, मन की बस है डोर,
जितनी खोले बंधन को, उतना बढ़े अंधेर।
अर्थ: ज्ञान की कोई सीमा नहीं है, यह हमारे मन की सीमाओं पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे हम मन के बंधनों को खोलते हैं, वैसे-वैसे अज्ञानता दूर होती जाती है।
9. हर एक बूँद में सागर है, हर कण में संसार,
जग के इस विस्तार में, देख सको तो प्यार।
अर्थ: हर छोटी चीज में महानता छिपी होती है, हर कण में पूरा संसार बसा है। जो इस विस्तार को समझ सकता है, वही सच्चे प्रेम को देख सकता है।
10. जो झुके वो पाएगा, जो अहंकार करे दूर,
नम्रता ही है सच्चा मार्ग, यही संत का गुर।
अर्थ: जो व्यक्ति अपने अहं
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